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50 साल पहले एक फिल्म आयी थी - जंजीर, इस फ़िल्म में पूर्ववर्ती सफल नायिका औऱ असफल नायक की जोड़ी थी। जया भादुड़ी जंजीर फिल्म से पहले बहुत बड़ी नायिका बन चुकी थी।हरिवंश राय बच्चन और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की करीबी मित्र तेज़ी बच्चन के बेटे होने के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मित्र का टेग लगे हुए अमिताभ बच्चन जिन्हें सारी जुगत लगाने के बावजूद सफलता नही मिली थी।
जंजीर फिल्म प्रकाश मेहरा की फिल्म थी, उनके जेहन में इस फिल्म के लिए धर्मेंद्र पहली पसंद थे लेकिन धर्मेंद्र ने ना कर दी। प्रकाश मेहरा ने देव आनंद, राजकुमार औऱ राजेश खन्ना से सम्पर्क किया लेकिन बात नहीं बनी। शशि कपूर ने प्रकाश मेहरा को अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया। जया भादुड़ी ने भी सहमति दी।ऐसे में अमिताभ बच्चन जंजीर के नायक बने।
प्रकाश मेहरा ने जंजीर के नायक का नाम फिल्म के स्क्रिप्ट के हिसाब से सोचा। व्यक्ति बुराई पर "विजय" हासिल करे । "विजय" का टेग अमिताभ के साथ भी लगा।
जंजीर एक ऐसे व्यक्ति की कथा थी जो अपने माता - पिता की हत्या अपनी आंखों के सामने देखता है। हत्या करने वाला हाथ मे एक जंजीर पहनता है जिसमे सफेद घोड़ा लटका होता है। ये युवक बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनता है।अवैध शराब के गिरोह पकड़ने की कोशिश, झूठे रिश्वत के मामले में फ़सना सुधरे हुये अपराधी से मदद लेकर दीवाली के दिन अपने माता पिता की हत्या का बदला लेने के घटनाक्रम में फिल्म खत्म होती है, एक ऐसी शख्सियत जन्म लेती है जो 1932 से लेकर अब तक के सारे नायकों को बौना कर महानायक बन जाता है।
"ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं" इस अमर डायलॉग से अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन का जन्म हुआ था। इसी नाराजगी को अमिताभ में भर कर शोले, त्रिशूल, दीवार,काला पत्थर, शक्ति, अग्निपथ सहित न जाने कितने फिल्मों में भुनाया गया।कह सकते है कि नाराजगी की जंजीर बन रही थी।
अमिताभ बच्चन, प्रेम के नायक नही रहे बल्कि विद्रोही नायक रहे। जंजीर का जमाना ही ऐसा था। देश मे राजनैतिक उथलपुथल मची हुई थी। बेरोजगारी, भुखमरी, का तांडव हो रहा था। भृष्ट्राचार,सुरसा की तरह मुँह खोल रहा था।अव्यवस्था में व्यवस्था की गुंजाइश ने ऐसा नायक खड़ा कर दिया कि हर युवक के भीतर एक अमिताभ जन्म ले चुका था। आम जनमानस में ऐसे नायकत्व को पाना नए युग की शुरुआत थी जिसे "जंजीर" के बदौलत आम दर्शक ने पाया था।
अगर उस समय राजकुमार ,प्रकाश मेहरा को जंजीर फिल्म के लिए हां कर देते तब भी फिल्म तो दौड़ती क्योकि जो डायलॉग "जंजीर" में सलीम जावेद ने लिखे थे वो केवल राजकुमार ही बोल सकते थे । राजकुमार मौला व्यक्ति थी उनकी ना के चलते दुनियां को "विजय" मिल गया।
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