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** पहली किश्त
समाचार पत्र हो या पत्र पत्रिकाएं खबरें बगैर फोटों की अच्छी नहीं लगती है। विषय के अनुकूल फोटो लगे तभी कलेवर सजता संवरता है। बात जब घटना प्रधान खबरों की हो तो वास्तविक फोटो ही खबर की महत्ता बढ़ाती है। आज तमाम आधुनिक संसाधन के बीच पत्रकार व फोटोग्राफर अपने हूनर प्रिंट मीडिया में दिखा रहे हैं लेकिन समय के साथ अब इलेक्ट्रानिक्स मीडिया की तूती बोल रही है। प्रतिस्पर्धा में अपने को बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है। पत्रकारिता में आज की युवा पीढ़ी अपनी बेहतरी के लिए पुराने पत्रकारों की रिपोर्टिंग व फोटोग्राफरों की फोटो व उनसी जुड़ी घटनाओं के बारे में जानना चाहते हैं। उनके लिए कुछ एक जानकारी हम साझा करने जा रहे हैं। अपने जमाने के मशहूर प्रेस फोटोग्राफर विनय शर्मा की खींची फोटो व उनके संस्मरण जो वो खुद बता रहे हैं। यह किश्तों में वे हमें प्रदान करेंगे और हम उसे पाठकों तक पहुंचायेंगे। जो विनय शर्मा को जानते हैं वे तो यही कहते हैं कि विनय शर्मा कम बोलते हैं उनका कैमरा ज्यादा बोलता है...।
जो विनय शर्मा ने बताया..एनएमडीसी के रिटायर्ड चीफ फोटोग्राफर एस. भारती ने उन्हे कैमरा पकडऩा सिखाया। उसी ने बेसिक नॉलेज भी दी। उसके बाद सुनीलकुमार जी से मेरा परिचय हुआ। मैं उन्हें शौकिया खींची गई अपनी तस्वीरें उन्हें दिखाता था। उनमें से कुछ तस्वीरें उन्होंने देशबंधु में छापीं। वहां से मेरा मनोबल बहुत ज्यादा बढ़ा कि मैंने जो तस्वीरें खींची हैं वे कहीं छपने लायक हैं। देशबंधु में मुझे फोटो जर्नलिस्ट के रूप में लाने का श्रेय भी सुनीलकुमार जी को है। फोटो पत्रकारिता की बुनियादी चीजें सिखाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। फोटोग्राफी में डिप्लोमा कोर्स भी मैंने किया लेकिन वह सिर्फ एक डिग्री थी। असली ट्रेनिंग तो अखबार के दफ्तर में काम करते हुए मिली। हर दिन नया काम होता था। नई चुनौती होती थी। अखबार के लिए फोटो खींचने के दौरान कई बार खतरों का सामना करना पड़ा। कई बार हादसे होते होते बचे।
शेरनी सामने दहाड़ रही थी और हमें फोटो लेनी थी-
गरियाबंद संवाददाता की खबर आई कि जंगल से शेर के दहाडऩे की आवाज आ रही है। यह सुनते ही हम बाइक से रवाना हो गए। जहां से आवाज आ रही थी वह जगह घने जंगलों के बीच थी जहां पहाडिय़ों को पार करके जाना पड़ा। दरअसल वहां एक शेरनी का एक पंजा शिकारियों के लगाए फंदे में बुरी तरह फंस गया था। वह दर्द से बेहाल थी और गुस्से में दहाड़ रही थी। उसकी आवाज दूर दूर तक सुनाई दे रही थी। आसपास के गांव वाले आवाज सुनकर वहां जमा हो चुके थे। मैंने शेरनी की फोटो लेनी शुरू की। धीरे धीरे उसके करीब जाकर फोटो लेने लगा। अच्छी फोटो लेने की भी इच्छा थी और डर भी लग रहा था कि अगर शेरनी का पंजा फंदे से छूट गया तो क्या होगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने गुस्से से भरी हुई शेरनी आजाद होने के बाद क्या कर सकती थी। खैर, उसकी कई तस्वीरें लीं। तब तक वन विभाग ने उसे ट्रैंक्युलाइज करने वाले इंजेक्शन से बेहोश कर दिया। इसके बाद भी उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि उसका रौद्र रूप हम देख चुके थे। बाद में वह शेरनी नंदनवन लाई गई। मकर संक्रांति के दिन लाने के कारण उसका नाम शंकरी रखा गया। वहां वह अपने बाड़े में बहुत साल तक जिंदा रही।
लौटते समय हमारे साथ हादसा हो गया-
लौटते समय हमारे साथ हादसा हो गया। हमारी बाइक की रफ्तार तेज थी। रास्ते में एक नाला पड़ा जिसका हम अनुमान नहीं लगा पाए। गाड़ी नाले में उतरी और जोर से उछली। हम छाती के बल सड़क पर गिरे। कुछ पल के लिए मेरी सांसें बंद हो गईं। मैंने छाती पर मुक्के मारे तब जाकर सांस लौटी। फिर मैंने अपने साथी रिपोर्टर की सुध ली। हम जैसे तैसे उसी हालत में वापस आए। दूसरे दिन जब दर्द ठीक नहीं हुआ तो डाक्टर को दिखाया। पता चला कि पांच-सात पसलियों में हेयर क्रैक आ गया है। इस घटना से हमें सबक मिला कि फोटो खींचने का जुनून अपनी जगह है लेकिन सावधानी भी जरूरी है।
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