Share this post with:
* वरिष्ठ फोटोग्राफर विनय शर्मा संस्मरण - किश्त दो
रायपुर। समाचार में ही नहीं बल्कि फोटोग्राफी में भी एक्सक्लूजिव का चक्कर होता है। किसी बड़ी घटना-दुर्घटना की खबर तो सबको मिल जाती है ,लेकिन कुछ एक जगहों पर अकेले या पहले जाने का मौका कम मिलता है और इसका फायदा भी मिल जाता है। कहीं कहीं कुछ ज्यादा अच्छा करने के चक्कर में मुसीबत मोल लेने की भी नौबत आ जाती है।वरिष्ठ फोटोग्राफर विनय शर्मा संस्मरण की दूसरी किश्त में जानते हैं कुछ और प्रसंग..।
बाम्बरा साहब के कारण बाल बाल बच गया...
घटना रायपुर की है,सिविल लाइंस के एक पेट्रोल पंप में आग लग गई। मैं पहुंचा और फोटो खींचने लगा। अच्छी फोटो लेने की कोशिश में मैं आग के काफी करीब चला गया। तभी पीछे से हमारे परिचित पुलिस अधिकारी जीएस बाम्बरा साहब ने कंधों से पकड़कर मुझे पीछे खींचा और बोले- क्या कर रहे हो? यहां कभी भी ब्लास्ट हो सकता है। इसके क्षण भर बाद वहां बड़ा धमाका हुआ। बाम्बरा साहब के कारण मैं बाल बाल बचा। आज भी वह घटना भुला नहीं पाया हूं।
पुल की ऊंचाई इतनी थी कि गिरता तो...
घटना चांपा रेल दुर्घटना की है। ट्रेन के डिब्बे बेपटरी होकर पुल से नीचे गिर गए। बड़ी संख्या में लोग मारे भी गए और घायल भी हुए। वहां पहुंचकर पुल पर खड़े होकर जब मैं फोटो खींचने में मशगूल था तभी नीचे से किसी ने जोर से चिल्लाकर कहा कि आप पीछे हट जाइए। आगे पटरी पर स्लीपर नहीं हैं। बात मेरे कानों तक पहुंची और मैं पीछे हटा। अगर मैं आगे बढ़ जाता तो कुछ भी हो सकता था क्योंकि जमीन से पुल की ऊंचाई काफी ज्यादा थी।
हम भालू तलाश रहे थे और भालू पीछे खड़ा था...
एक दिलचस्प घटना हुई थी कि नंदनवन के बाड़े से भालू भाग गया था। खबर मिली तो हम नंदनवन पहुंच गए। कैमरा लेकर भालू को तलाश करने लगे। कुछ देर बाद किसी ने पूछा- क्या ढूंढ रहे हैं? हमने कहा- भालू को। उसने कहा-भालू तो तुम्हारे पीछे है। हमने देखा तो सचमुच पीछे भालू दो पैरों पर खड़ा था। शुक्र है कि उसने हम पर हमला नहीं किया।
जब बाघ से हो गया सामना...
एक और यादगार घटना है कि हम एक खबर करने के लिए चिल्फी घाटी के रास्ते मध्यप्रदेश जा रहे थे। हालांकि तब राज्य बंटवारा नहीं हुआ था। बहरहाल, चिल्फी घाटी के इलाके में हमारी बाइक पंक्चर हो गई। मेरे साथ मेरे साथी रिपोर्टर सुदीप ठाकुर थे। दोनों बाइक को घसीटते हुए पांच-छह किलोमीटर चले। एक मंदिर नजर आया। वहां के पुजारी ने बताया कि सुबह बसें चलती हैं। कड़कड़ाती ठंड में हमें खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी थी। हमने लकडिय़ां जमा करके जलाईं ताकि ठंड से कुछ तो बचाव हो। आग के पास लेटकर हम सोने का प्रयास करने लगे। फिर दहाडऩे की आवाज से हमारी आंखें खुलीं। सामने जो देखा तो हमारे होश उड़ गए। दो बाघ हमारे सामने ही कुछ दूरी पर बैठे हुए थे। ईश्वर की कृपा थी कि बगैर हमें कोई नुकसान पहुंचाए वे वहां से चले गए।
Share this post with: