00 रजनीश और इंदु को वॉचो के नये ओरिजिनल ‘बौछार-ए-इश्क़क’ में अपनी शादी वाली रात जासूस बनते हुए देखियेनई दिल्ली। क्या होता है जब एक अनिच्छुक पार्टनर (एक पार्टनर लिव-इन रिलेशनिशप में) को मजबूरन अपने बॉयफ्रेंड से शादी करनी पड़ती है, क्योंकि परिवार इस बात पर अड़ जाता है? उसे उसी की पसंद के लिये कठघरे में खड़ा किया जाता है और उसके भोलेपन के लिये भी उसका मजाक उड़ाया जाता है। लेकिन निश्चित रूप से, किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि कोई उसके और उसके साथी के बिस्तर पर इस्तेमाल किए गए कंडोम को रखने की शरारत करेगा और शादी की रात को पूरी तरह बर्बाद कर देगा। हालांकि, वॉचो मजेदार कॉमिक टाइमिंग और अनोखी कहानी से अनजान नहीं है। डिश टीवी के इन-हाउस ओटीटी प्लेटफॉर्म ने इस बार एक मजेदार रहस्यनमयी कहानी ‘बौछार-ए-इश्क़ा’ को रिलीज किया है। यह एक रात की पृष्टभूमि पर बना है, जोकि ट्विस्ट और टर्न, अजीबोगरीब पर्दाफाश और मजेदार गलतफहमियों से भरपूर हैं। रजनीश और इंदु, यूपी के रहने वाले एक युवा कपल हैं जोकि उत्तरप्रदेश के पड़ोसी शहरों कानपुर और लखनऊ के हैं। उनके बीच कॉलेज के दिनों में रोमांस शुरू होता है और सारी बाधाओं को दूर कर आज की स्थिति में पहुंचे हैं। जब पुराने ख्यालों वाले उनके परिवार को उनके लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में पता चलता है, तब शुरू होता है ड्रामा और उन्हें शादी करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। इंदु शादी के खिलाफ है, क्योंकि उसे बच्चे नहीं चाहिये और परिवारों को उसकी राय से आपत्ति होती है। यहां तक कि शादी से पहले सेक्स को सही ठहराने के अपने विचार व्यक्त करने को लेकर भी उसे विरोध का सामना करना पड़ता है। अपनी सुहागरात के दिन, अपने बिस्तर पर इस्तेमाल किया हुआ कंडोम देखकर गुस्सा हो जाती है और अनुमान लगाती है कि उनके परिवारों ने जानबूझकर ऐसा किया है। उसकी इच्छा पर, वह कपल सेक्स को लेकर लोगों की अदूरदर्शी सोच और उससे जुड़ी दकियानूसी सोच को सामने लाने के लिये पूरी रात संदिग्धों की पड़ताल करता है। इसके साथ कहानी में महत्वपूर्ण मोड़ और अर्थपूर्ण मैसेज सामने आते हैं। प्रमुख किरदारों के माध्यम से लेखक ने प्यार, शादी, सेक्स और परिवार के बारे में जिम्मेदार और गंभीर सवाल उठाये हैं। इस कहानी के माध्यम से यह सीरीज कुछ मुश्किल भावनात्मक उलझनों का जवाब देती है, जिसका सामना आम इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करता है। यह ठहाकों, इमोशन और ड्रामा का रोमांचक सफर है। इसके अंत मे, दर्शकों को उनके स्वभाव के बारे में जानने का मौका मिलता है और संवेदनशील मुद्दों पर उनकी अपरिपक्वे झलकियां भी पेश की गई हैं। इस शो मे परिवार के लोगों के बीच कुछ मजेदार बातचीत है, जोकि पूरी कहानी को और भी मसालेदार बनाती है। यह कहानी जीवन के सार की है जोकि उन परिस्थितियों में हास्यत का तड़का लगाती है, जिससे वे और भी मजेदार सफर बन जाता है। पर्सेंट पर्पल के प्रभावशाली प्रोडक्शन के तहत ईशान बाजपेयी, अंशुमन सिन्हा और तृप्ति कंगना द्वारा लिखे गए इस शो में एक जोड़े की अंतरंग भावनाओं को दिखाया गया है और किस तरह अंतरंगता और सेक्स जैसे मुद्दे आज के दौर में भी सामाजिक फैसलों का हिस्साा बने हुए हैं। इस शो के कलाकारों में अंकित शर्मा और अर्शा गोस्वामी शामिल हैं जिन्होंने नायक - रजनीश सिन्हा और इंदु भारद्वाज की भूमिका निभाई है।इस लॉन्च के बारे में, सुखप्रीत सिंह, कोरपोरेट हेड- मार्केटिंग, डिश टीवी और वॉचो, डिश टीवी इंडिया लिमिटेड का कहना है, “बौछार-ए-इश्क़ ’ के माध्यम से हमने अपने दर्शकों के लिये एक बार फिर मनोरंजक सीरीज का निर्माण किया है। भोपाल में फिल्माई गई, भीड़ और शहर का प्राकृतिक माहौल लखनऊ और कानपुर की व्यस्त गलियों का अनूठा पर्याय लगता है। रहस्यिमयी कहानियों के जोनर में हमारी शुरूआत होने के कारण, हमारी टीम को शूटिंग के दौरान कुछ बेहद आकर्षक सिनेमाई पलों का सामना करना पड़ा। पूरी कास्ट अपने-अपने किरदारों के साथ एक उत्तर भारतीय निवासी के कुंद और सरल चित्रण के माध्यम से न्याय करते नजर आते हैं। जो अजीबोगरीब व्यंग्य के साथ व्यंग्यात्मक लहजे में बात करते हैं। हम अपने टारगेट दर्शकों के लिये अर्थपूर्ण ह्यूमर और मॉडर्न लेकिन पारिवारिक मूल्यों से जुड़े विषय लाना चाहते हैं, जोकि अपनी रोजमर्रा की चिंताओं से दूर होने के लिये हमारा कंटेंट देखते हैं।”सभी जोनर में देखने योग्य कंटेंट की एक अनूठी चुनिंदा पेशकश करते हुए, वॉचो हैप्पी, गुप्ता निवास, जौनपुर, पापा का स्कूटर, आघात, चीटर्स - द वेकेशन, सरहद, मिस्ट्री डैड, जालसाजी, डार्क डेस्टिनेशन जैसी वेब सीरीज सहित कई ओरिजिनल शो लेकर आया है। इट्स माई प्लेज़र, 4 थीव्स, लव क्राइसिस, अर्धसत्य, छोरियां और रक्त चंदना, लुक आई कैन कुक और बिखरे हैं अल्फाज़ जैसे ओरिजिनल प्रभावशाली शो भी हैं। स्क्रीन (एंड्रॉइड और आईओएस डिवाइस, डिश एसएमआरटी डिवाइस, डी2एच मैजिक डिवाइस और फायर टीवी स्टिक) और https://www.watcho.com/,पर उपलब्ध, वॉचो वर्तमान में 35 से अधिक ओरिजिनल शो, 300 से अधिक एक्सक्लूसिव प्ले और हिंदी, कन्नड़ और तेलुगु में 100 से अधिक लाइव चैनल प्रदान करता है।
मुंबई। रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी की चर्चा इन दोनों जोरों पर हैं। अब खबर आ रही है कि कपल की वेडिंग फेस्टिविटीज 13 या 14 अप्रैल से शुरू हो जाएंगी। दोनों की प्री-वेडिंग फेस्टिविटीज और ग्रैंड शादी चेंबूर स्थित 'RK हाउस' में होगी। बताया जा रहा है कि 3-4 दिन की सेरेमनी के बाद रणबीर-आलिया पंजाबी रीति रिवाज से 17 अप्रैल को शादी करेंगे।रिपोर्ट्स के मुताबिक वेडिंग वेन्यू RK हाउस में दोनों की शादी की तैयारियां शुरू भी हो गई हैं। कपल की प्री-वेडिंग फेस्टिविटीज भी पंजाबी रीति रिवाज से ही होगी। हालांकि, वेडिंग डेट को लेकर दोनों फैमिली की तरफ से अब तक कोई ऑफिशियल कन्फर्मेशन नहीं मिला है। दोनों परिवार शादी को सीक्रेट रखना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि 13 अप्रैल को कपल की मेहंदी सेरेमनी है। इसके बाद हल्दी, संगीत समेत सभी सेरेमनी होंगीं।कपूर खानदान की विरासत RK बंग्लो को इस ग्रैंड वेडिंग के लिए चुना गया है। सूत्र ने कहा, "फैमिली का मतलब द वर्ल्ड फॉर द कपूर है। यह शायद इस पीढ़ी की आखिरी कपूर शादी है। इसलिए वे इसे अपनी रूट्स के करीब रखना चाहते हैं।" इस भव्य बंगले में एक विशाल लॉन है और जो कपल की शादी में दोस्तों, फैमिली और गेस्ट के लिए काफी बड़ा है। रणबीर के पेरेंट्स ऋषि कपूर और नीतू कपूर की शादी 20 जनवरी 1980 को RK हाउस में ही हुई थी।शादी में शामिल होने वाले सेलेब्स की लिस्टरणबीर कपूर और आलिया भट्ट की इस ग्रैंड वेडिंग में दोनों की फैमिली, फ्रेंड्स और कई सेलेब्स भी शामिल होंगे। इस शादी में शामिल होने वाले कुछ गेस्ट के नाम भी सामने आए हैं। बताया जा रहा है कि कपल के बेस्ट फ्रेंड डायरेक्टर अयान मुखर्जी, करन जौहर, आदित्य रॉय कपूर, विक्की कौशल-कटरीना कैफ, रणवीर सिंह-दीपिका पादुकोण, डायरेक्टर संजय लीला भंसाली, जोया अख्तर, वरुण धवन, रोहित धवन, डिजाइनर मसाबा गुप्ता, शाहरुख खान, अर्जुन कपूर, फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा और अनुष्का रंजन समेत कई सेलेब्स शादी में शामिल होंगे।रणबीर कपूर ने अपनी शादी में सालों से उनके साथ काम कर रहे टेक्नीशियन, हेयर एंड मेकअप आर्टिस्ट स्पॉट बॉयज और सभी असिस्टेंट्स को भी इनवाइट किया है। इस शादी में 450 से ज्यादा गेस्ट शामिल होंगे, जिसके लिए 'शादी स्क्वाड वेडिंग प्लानर्स' को अपॉइंट किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक शादी के बाद आलिया और रणबीर हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड जाएंगे।
-0 संजय दुबे-0 बात सालो पुरानी है। एक फिल्म आयी थी- इल्ज़ाम। इस फिल्म में एक डांसर एक्टर का आगमन हुआ था। मूलत: ये ब्रेक डांसर की भूमिका में आया था।चेहरा मोहरा ऐसा नही था कि आगे चल कर स्टार बन जाता लेकिन पहले तो अपने को इस एक्टर ने अपने नाच गम्मत से लोगो का दिल बहलाया और फिर जब नाम चलने लगा तो विदूषक(कॉमेडियन) हीरो के रूप में स्थापित हो गया।गोविंदा- ये इस कलाकार का नाम है।जिसने दो तीन दशक तक जमकर मनोरंजन किया।बे सिर पैर की फिल्में जिनमे दिमाग बाहर रखकर फुहड़ता के बल पर हँसना हो तो गोविंदा नंबर 1 इंटरटेनर थे, हीरो न. 1 के समान। वैसे भी नंबर 1 से गोविंदा को विशेष स्नेह ही रहा और एक समय ऐसा भी आया था जब महानायक को फिल्मो में बने रहने के लिए गोविंदा का सहारा लेते हुए भले ही उनको बड़े मियां बनाये थे लेकिन फि़ल्म में छोटे मिया पहले थे। देश मे मनोरंजन करने वालो नायको की एक सीरीज़ चला करती रही है जैसे दुखी नायक,, प्यार करने वाले नायक, खल नायक औऱ इनके बाद के नायक थे नाचने वाले नायक। पहले पहल तो ईश्वरीय फिल्में बनती थी- गोपीकृष्ण मुख्य कलाकार के रूप में होते थे। उनके बाद में नृत्य शैली बदलने लगी। शम्मी कपूर याहू अंदाज़ में नाचने लगे।तब पश्चिम का ट्विस्ट मशहूर होने लगा था।शम्मी ने खूब ट्विस्ट किया। शम्मी के बाद जितेंद्र आये। वे भारतीय नृत्य निर्देशकों के इशारे में अपना डांस करते थे। जितेंद्र थिरकते थे, मटकते थे। जितेंद्र के बाद डांस के बल पर मिथुन ने कदम रखा। वे इंडियन डिस्को डांसर बने। बाद में मिथुन ऊटी में काला कपड़ा पहन कर विचित्र भूमिका करने लगे तो गोविंदा का आगमन हुआ। बहुत कम जगह की जरूरत पड़ती थी गोविंदा को। उनके सिर से लेकर पैर तक संचालन की लयबद्धता कयामत ढाती रही है। काया संचालन के साथ चेहरे पर भाव लाने का सामर्थ्य को जितना गोविंदा ने भुनाया उतना किसी ने नही भुनाया। आज भी गोविंदा किसी कार्यक्रम में होते है तो वे आकर्षण होते है। वैसे गोविंदा अन्य कलाकारों राजेश खन्ना, विनोद खन्ना,शत्रुघ्न सिन्हा के समान सांसद भी बने लेकिन वे राजनीति के लिए थे ही नही, व्यर्थ में समय बर्बाद कर गए।। आज 58 साल के हो गए है। जन्मदिन पर शुभकामनाएं..।
0- संजय दुबे -0 इसी साल 98 के उम्र में दिलीप कुमार ने आखरी सांस ली थी।आज होते तो 99 के फेर में पड़ते लेकिन नही पड़ पाये और सुपुर्द ए खाक हो गए। भारत जहां आज़ाद के पहले से लेकर आज़ादी के बाद के वर्षों में मनोरंजन का एक मात्र साधन फिल्में हुआ करती रही है उस साधन में दिलीप कुमार एक साध्य थे अभिनय के। उनके जमाने के राज कपूर, देवानंद सहित अन्य कलकरोवके हुजूम में दिलीप कुमार अभिनय के चलते फिरते प्रयोगशाला थे। 1950 से लेकर 1965 तक दिलीप कुमार सफलता के बड़े नाम थे,सफलता के पर्याय। जोगन, बाबुल,दीदार, तराना,दाग, अमर,उडऩखटोला, इंसानियत, देवदास, नया दौर, यहुदी, मधुमती, पैगाम, आज़ाद, कोहिनूर, आन, मुगल ए आज़म, गंगा यमुना, लीडर,, दिल लियस दर्द लिया,राम श्याम, आदमी उनकी लगातार सफल होने वाली फिल्में थी। दिलीप कुमार ने 1952 में पहली टेक्नी कलर फिल्म आन में अभिनय किया था जिसका प्रीमियर लंदन में हुआ था। तब के जमाने मे भारतीय सिनेमा में दुख को परोसना एक मजबूरी थी। जिसका अंत भले ही सुखद होता था लेकिन अवसादिक माहौल रचा बसा होता था।इसका प्रमाण ये भी है कि दिलीप कुमार स्वयं भी अवसाद के शिकार हो गए थे। आज डिप्रेशन जो आम बीमारी हो गयी है उसका सार्वजनीकरण दिलीप कुमार ने किया था। उनको हल्के मूड की फिल्में करने की सलाह दी गयी ।राम और श्याम उनकी इसी प्रकार की हल्की फुल्की फिल्म थी।हर कलाकार के समान दिलीप कुमार भी उम्रदराज होने के कारण दर्शको द्वारा खारिज किये गए लेकिन वे 1980 के दशक में चरित्र अभिनेता के रूप में वापस लौटे। क्रांति, विधाता, शक्ति, दुनियां, कर्मा, सौदागर, उनकी बेमिसाल फिल्में रही है। उन्होंने अपने अभिनय का लोहा दोनो काल मे मनवाया।उनको मुगल ए आज़म में बेहतर से बेहतरीन अभिनय करते देखा है,राम औऱ श्याम में उनको हास्य की नई परिभाषा गढ़ते देखा। गंगा जमुना में डाकू की भूमिका में सशक्त होते देखा है। शक्ति,कर्मा औऱ सौदागर में वे अभिनय के चरम पर रहे।माना जा सकता है कि अभिनय के बजाय दिलीप कुमार भूमिका में रच बस जाते थे।
0- संजय दुबे-0अगर आपको आंख बंद कर धर्मेंद्र की किसी फिल्म का नाम लेने के लिए कहा जाए तो शायद आप शोले का नाम ले सकते है ये फिल्म उनके कद काठी के अनुरूप की आदतन फिल्मों की एक कड़ी थी लेकिन मैं जिस धर्मेंद्र को जानता हूं वह धर्मेंद्र सत्यकाम,दोस्ती,चुपके चुपके, दिल्लगी फिल्म का धर्मेंद्र है। आमतौर पर व्यावसायिक मसाले वाली फिल्मों में जिस कलाकार को एक बार सफलता मिल जाती है उसके बाद फिल्में बदलती जाती है लेकिन नायकत्व जस का तस रहता है। धर्मेंद्र जब फिल्मो में आये तो पारिवारिक विषयो के इर्दगिर्द ही कथानक घूमा करती थी।जब दर्शक विषयांतर हुआ तो अपराध जगत का आगमन हुआ। खलनायक के खलनायकत्व को खत्म कर बुराई पर अच्छाई की जीत का नया संसार जन्म लिया तो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में दरासिंग हीमेन नही कहलाये बल्कि धर्मेंद्र को ये खिताब मिला था। अमूमन वे हर फिल्म में बुरे किरदारों के नायक हुआ करते थे।अगर उनकी फिल्मों का पोस्टमार्टम किया जाए तो वे इतनी चोरी कर चुके है कि वे अमेरिका में रहते तो पांच एक सौ साल की सज़ा पा जाते। उनकी ऐसी भी फिल्मो को हमने देखा है लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जिसकी दंतपंक्ति दर्शनीय हो और मुस्कान कहर बरपाने वाली हो उसको भले ही शोले में वीरू के रूप में देखना सुखनवर हो लेकिन इस कलाकार की आत्मा को देखना हो तो निश्चित रूप से सत्यकाम,चुपके चुपके,दोस्ती, और दिल्लगी जरूर देखना चाहिए। ये फिल्में धर्मेंद्र के वीरू छाप फिल्मों से पलट अहिंसक फिल्में है जिनमे धर्मेंद्र को ज्यादातर एक अध्यापक की भूमिका में जीने का अवसर मिला था। इन फिल्मों में धर्मेंद्र की आत्मा को इस बात का सुकून मिला होगा कि उन्हें खलनायको को पीटने से निजात तो मिली। इन फिल्मों में वे सम्मान के हकदार है ये बात मैं दमदारी से कहूंगा। इनसे जुदा एक फिल्म जेहन में है- प्रतिज्ञा। ये फिल्म मेरी पसंदगी की रही है क्योंकि अपने स्वभाव के विपरीत धर्मेंद्र की हास्य भूमिका में आना पड़ा था।नाच न आने के बावजूद नाचना पड़ा था। वे हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ उर्दू के भी जानकार है।उम्र के 86 वे पड़ाव में स्वस्थ है। आज उनका जन्मदिन है ।शुभकामनाएं प्रोफेसर।
-0 आलोकदुबे-0सुधीर 70 से 90 के दशक में जाना पहचाना नाम,बहुत कम लोगों को ये मालूम होगा कि सुधीर का असली नाम भगवान दास लथूरिया था। सुधीर कुमार फिल्मों में एक्टर बनकर आये ,पर बाद में विलेन और नकारात्मक भूमिका में पहचान बना ली। सुधीर कुमार को शुरू से रेस में पैसा लगाने का शौक था और वो बहुत भाग्यशाली थे कि उन्होने करोडों रूपये रेस के मैदान से कमाये।सुधीर कुमार एक बात हमेशा कहते थे कि कमाने वाला एक और खाने वाले अनेक, पर उनकी जिदंगी में कमाने वाले वे खुद पर खाने वाला कोई नही, अविवाहित थे, और परिवार मे कोई था भी नही। अंधेरी मे बहुत बड़ा बगंला बनवाया। दौलत और प्रापर्टी बहुत थी। सुधीर कुमार ने देवानंद की फिल्म हरे रामा हरे कुष्णा से शुरूवात की। दीवार फिल्म मे जयचंद्र की भूमिका निभायी, याद दिला देता हूँ यही जयचंद्र अभिताभ बच्चन को बाल कलाकार के रूप मे जूते पालिश कराने के बाद पैसे फेंक कर देते है। फिर आई 1975 मे धर्मात्मा जिसमे सुधीर ने.नटवर की भूमिका निभाई, इस रोल.मे उनके चेहरे मे शैतानियत देखते बनता था, धीरे धीरे सुधीर बड़े बड़े.निर्माताओ की नजर मे आ गये।सुभाष घई ने विश्वनाथ,प्रकाश मेहरा ने शराबी, मनमोहन देसाई ने सत्ते पे सत्ता जैसी फिल्मो.मे सुधीर का रोल.दिया । सत्ते मे सत्ता मे सोम की भूमिका की। यहीं से और प्रसिद्वि मिली। फिर शान, कच्चे धागे, कालिया, मेरी जंग, जैसी कही फिल्मों मे काम किया। शाहरूख खान की बादशाह उनकी आखरी फिल्म थी। सुधीर कुमार शराब और सिगरेट के आदी थे,शादी उन्होने की नही थी। शराब और सिगरेट के कारण.उनका फेफड़ा खराब हो गया और 12 मई 2014 को इस अदाकार ने दुनिया से रुखसत ले ली। एक नकारात्मक कलाकार असल जिदंगी मे बहुत अच्छा और जिंदादिल इंसान था । सुधीर कुमार के साथ यह बात प्रसिद्व थी कि वे.शर्त और घोड़ों की रेस कभी नही हारते थे।
0- संजय दुबे-0राष्ट्रीय फि़ल्म पुरस्कार सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। इसमें भी उत्कृष्ट पुरस्कार की बात करे तो दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की कीमत सबसे अधिक है। ये पुरस्कार बिना किसी लाग लपेट के सादगी लेकिन सम्मानीय ढंग से दिया जाता है। ये किसोइ भी शराब के आड़ में सोडा, अथवा गुटखे की आड़ में जर्दा अथवा छद्म खूबसूरती बेचने वाले कास्मेटिक कम्पनी के द्वारा प्रायोजित नही होता है। एकात बार शर्मिला टैगोर के सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष रहने के दौरान 2004 में हम तुम जैसी फ्लाप फिल्म हम तुम को छोड़कर अमूमन ये पुरस्कार प्रतिष्ठा को बढ़ाया ही है। इस साल ये पुरस्कार जिस सख्सियत को मिला है वे पश्चिम के मराठी मानुस होकर दक्षिण में एक बस कंडक्टर से अद्भुत भूमिका करनेवाले रजनीकांत को मिला है। वे हिंदी भाषी फिल्म कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा के समान ही दक्षिण के सफल कलाकार रहे है जिन्होंने खलनायक होने की सफलता के बाद खल छोड़ नायक बने।दक्षिण में रजनीकांत की लोकप्रियता आपको आश्चर्य में डाल सकती है क्योंकि हिंदी फिल्मों के नायकों के महंगे होने से पहले रजनीकांत ही करोड़ रुपये पाने वाले पहले नायक हुए थे। उनकी प्रतिभा भी निराली रही है। विस्मयकारी तरीको से उनका नायकत्व निखरता था। उन्होंने बॉलीवुड के चॉकलेटी नायकों के पलट सामान्य चेहरे से अपनी अलग दुनियां बनाई। उनके मनोरंजन की दुनिया के प्रति सालो के समर्पण के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया है। अब तक 51 व्यक्तित्व दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजे गए है जिसमे हिंदी, तेलगु,तमिल,मलयालम, सहित बांग्ला भाषा मे अथक प्रयास कर मनोरंजन की दुनियां को औऱ बेहतर बनाने वालों को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला है। निर्माता, निर्देशक, नायक, नायिका, गीतकार, संगीतकार के अलावा गायक गायिका और तकनीकी तौर पर छायाकार(केमरामेन) भी दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजे गये है।माना जाता है कि निर्माता बी सबसे ज्यादा वितीय जोखिम मोल लेने वाला होता है। इंक़े कारण ही फिल्मों का भूर्ण गर्भ से जन्म लेता है। बी एन सरकार, बारले, इस एल वी प्रसाद, बी नागि रेड्डी, भाल जी पेंढारकर, बी आर चोपड़ा, ऋषिकेश मुखर्जी, बी आर चोपड़ा, मृडाल सेन, अडूर गोपाल कृष्ण, श्याम बेनेगल, दी रामानायडू, के बालाचंदर, ओर के विश्वनाथ निर्माता श्रेणी से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार ग्रहण किये है। निर्देशक , जो फिल्म का आधार स्तम्भ होता है इस श्रेणी में धीरेन्द्र नाथ, नितिन बोस,सत्यजीत रे, ?र वी शांताराम का नाम है। संगीत के श्रेणी में पंकज मालिक औऱ नौशाद अली बतौर संगीतकार, मजरूह सुल्तानपुरी,प्रदीप, औऱ गुलजार के साथ गायकों में भूपेन हजारिका और मन्ना डे औऱ गायिकाओ में लता मंगेशकर के साथ उनकी बहन आशा भोसले को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला है। फिल्मों में पुरुषों का वर्चस्व है ये बात नायिका औऱ नायकों को मिले पुरस्कार ही बया करता है। नायिकाओं में केवल 4 औऱ नायकों को 17 बार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला है। नायिकाओं में देविका रानी, रूबी मेयर्स(सुलोचना) कानंनदेवी सहित दुर्गा खोते है जबकि नायकों में पृथ्वीराज कपूर, सोहराब मोदी,पेड़ी जयराज, राज कपूर, अशोक कुमार, नागेश्वर राव, दिलीप कुमार, डॉ राजकुमार, शिवाजी गणेशन, देवानंद, सौमित्र चटर्जी, प्राण,शशि कपूर, मनोज कुमार, विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन और अब इस फेरहिस्त में रजनीकांत जुड़ गए है तकनीकी श्रेणी में छायाकार वी के मूर्ति को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिलना उनको पूरे फेरहिस्त में सबसे महत्त्वपूर्ण बनाता है ।
-0 संजय दुबे-0 देश मे 1969 का साल राजनीतिक घटनाक्रम के बदलते परिवेश का साल था। कांग्रेस में विभाजन के साथ साथ एक नई शक्ति के रूप में इंदिरा गांधी का शिखर की ओर बढऩे की प्रक्रिया भी अग्रसर हो रही थी। इसी दौर में ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक फिल्म बनाई थी- सात हिंदुस्तानी। इस फिल्म में प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र भी एक हिंदुस्तानी थे। फिल्म आयी चली गयी।आखिर सातवें हिंदुस्तानी जो थे। ये दौर नाराजगी का दौर था। गुस्सा हवाओं में घुल रहा था। इधर फिल्मों में समान्तर रोमांस के साथ साथ एक असफल नायक को लेकर अनेक कलाकारों के द्वारा छोड़ी गई फिल्म में अवसर दिया गया। नाम था इस फिल्म का जंजीर। शायद जंजीर फिल्म न बनती तो अमिताभ बच्चन भी नही होते, क्योकि वे इस फिल्म से पहले बहुत सारी बेढब फिल्में कर चुके थे औऱ जंजीर उनके लिए आखिरी मौका था। इंसपेक्टर विजय । यही नाम था उनका। नाराजगी का आवरण धारण किये हुए अमिताभ बच्चन के अभिनय की नींव ही नाराजगी बन गया। उनसे पहले के नायकों के बगीचे में नायिकाओं के इर्दगिर्द नाचना ही काम हुआ करता था लेकिन डॉन फिल्म के पहले तक अमिताभ थिरके भर थे । नाचे भी भगवान दादा के समान। आपातकाल भी नाराजगी का दौर था सो विजय औऱ नाराजगी का दौर खूब चला। शोले,त्रिशूल,दीवार( मेरी नजऱ में अमिताभ की सबसे बेहतर फिल्म) काला पत्थर, में आंखों में विरोध का तेवर लिए अमिताभ आगे बढ़ते गए। पांच दशक औऱ 200 फिल्में उनके हिस्से में दो काल खंड में उनके हिस्से में है। अपनी दूसरी पारी में जब अमिताभ सफेद फ्रेंच कट दाढ़ी के साथ अवतरित हुए तो वे जुदा रहे। उनको विस्तार के साथ अनेक कठिन भूमिका में जीने जा मौका मिला। पिंक फिल्म में वे वकील की भूमिका में अनोखे थे तो पा में जुदा।कहने का मतलब यही कि दिलीप कुमार के बाद दिलीप कुमार से ज्यादा सफल कलाकार के रूप में अमिताभ महानायक हो गए। कहते है कि कोई व्यक्ति एक शानदार शुरुवात कर दे तो अनेक लोग अनुशरण करने लग जाते है। इक्कीसवीं सदी के शुरुवात से पहले फिल्मों से असफल कलाकार छोटे पर्दे ने आकर गरीबी गुजारा करते थे।अमिताभ के लिए भी ऐसा ही था लेकिन वक़्त हमेशा उनका साथ देता है नो साहस करते है। ज्ञान और मनोरंजन के अलावा लालच के सम्मिश्रण के रूप में उनको कौन बनेगा करोड़पति में लाया गया।अपने सकल हानि को बराबर कर वे लाभ के पासंग में खड़े है।किसी कलाकार के अभिनय का पारस पत्थर देश के नागरिक अलंकरण पुरस्कार होते है। पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण से वे अलंकृत हो चुके है। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार चार बार उनके गले मे लटक चुके है। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार उनके हिस्से आ चुका है। भारत रत्न शेष है।जन्मदिन की शुभकामनाएं।-
-0 संजय दुबे-® साठ के दशक से लेकर कोरोना काल के पहले तक अगर गुरुवार(नब्बे के दशक तक) और अब शुक्रवार का कोई मतलब हुआ करता है तो सिनेमाघरों में लगने वाली फिल्में ही हुआ करती थी। शुक्रवार से लेकर रविवार तक ये माना जाता है कि केंद्रीय सरकार के सरकारी कर्मचारी अधिकृत रुप से अवकाश पर होते है। शनिवार से विद्यालय महाविद्यालय बन्द होने के बाद मनोरंजन के नाम पर फिल्मो में विचरना अनिवार्यता ही रही थी। कोरोना ने अब संदर्भ बदल दिए है, ओटीटी आने के बाद अब फिल्में भी 3 बाय 6 इंच के पर्दे में सिमट गया है। एक जमाने मे गानों के लिए जाने वाला दर्शक वर्ग खत्म होते जा रहा है।ढाई से लेकर तीन घण्टे वाली फिल्में अब नही बनती है। लेकिन आजादी के बाद ऐसा दौर आया था।श्वेत श्याम फिल्मों के दौर में अनेक नायक आये। पारिवारिक नायक रहे, प्रेमी नायक रहे लेकिन इन नायकों में एक नायक ऐसा भी आया जिसका चेहरा नायक सा नही था। सरकारी सेवा में थे वो भी पुलिस विभाग में, ऐसे ही सरकारी कर्मचारी का रुतबा आम आदमी से अलग होता है तिस पर पुलिस विभाग याने वर्दी का रौब, इसी वर्दी से निकल कर आये थे -राजकुमार..। यथा नाम तथा गुण, का उदाहरण देखना हो तो इस शख्स की शख्सियत को इसके हर फिल्म में देख लीजिए। आपसे अगर पूछा जाए कि किस कलाकार ने संवाद लिखनेवालों को आम दर्शको के सामने लाया तो हर व्यक्ति राजकुमार का ही नाम लेगा। मदर इंडिया में पलायन करने वाले विकलांग किसान का अपने बेटे से कहना बिरजू, बीड़ी पिला दे से लेकर अपनी हर फिल्म में संवाद अदायगी के लिए एक ही नाम काफी था - राजकुमार। वक़्त में वे सबसे बड़े बिछुड़े भाई बने थे। सीढिय़ों से उतरते वक़्त उनके सफेद जूते पहचान थी कि राजकुमार आ रहे है। कालांतर वे निखरते गए उनकी अपनी एक अभिनय दुनियां थी जिसमे वे अकेले किरदार थे।उनके कहे संवाद आज भी कानो में गूंजते है..यूं तो न जाने कितने संवाद है जो राजकुमार के चेहरे के सामने आते ही कानो में गूँजने लगते है लेकिन बुलंदी फिल्म में ये संवाद कि हम वो कलेक्टर नही जिसका फूंक मार कर तबादला किया जा सके। कलेक्टरी तो हम शौक के लिए करते है।दिल्ली तक बात मशहूर हैं कि हमारे हांथो में पाइप और औऱ जेब मे इस्तीफा हमेशा रहता है( अब ऐसा बोलने वाले लोगों की कमी हो गयी है). राजस्थान में हमारी जमीनात है और तुम्हारी हैसियत के जमींदार हर सुबह हमे सलाम करने हमारी हवेली आते है।जब दोस्ती करता हूं तो अफसाने लिखे जाते है जब दुश्मनी करता हूं तो तारीख बन जाती है। वे सालो तक बेमिसाल अभिनय करते रहे। सौदागर उनकी अंतिम फिल्म थी जिसमे दिलीप कुमार ने उनके अक्खड़पन को स्वीकार करते हुए दोस्ती दुश्मनी के बाद दोस्ती के खांचे में खुद को ढाला था। राजकुमार इस फिल्म में भी राजकुमार ही रहे थे। अगर आपको उनकी फिल्में देखने का शौक हो तो तिरंगा जरूर देखिएगा।
मुंबई। जब हम बिग बॉस के बारे में बात करते हैं, तो सबसे पहले हमारी जुबां पर सलमान खान का नाम आता है और जब बिग बॉस ओटीटी के बारे में बात की जाती है, तो करण जौहर का चेहरा आंखों के सामने घूमता है। इन दोनों के बाद हम खुद ब खुद उन कुछ प्रतियोगियों के बारे में सोचने लग जाते हैं, जिन्होंने इस शो में अपनी पहचान बनाई। बिग बॉस के घर में दो बार आ चुकी एक ऐसी ही प्रतिभागी हैं- राखी सावंत। प्रशंसकों को एक बार फिर से राखी सावंत को देखने का मौका मिलेगा। राखी सावंत हाल ही में बिग बॉस ओटीटी सेट पर नजर आईं और इस दौरान उन्होंने कई राज खोले एवं वह पूरी तरह से अनसेंसर्ड थीं। बिग बॉस के घर में दो बार रहने का अनुभव ले चुकीं राखी की बातों को सुनना घर के अंदर मौजूद सभी प्रतिभागियों के लिये एक ट्रीट की तरह था। बहरहाल, एक बात तो तय है कि एक ऑडियंस के रूप में, उन्हें बिग बॉस ओटीटी देखने में वाकई में मजा आता है। राखी ने बिग बॉस ओटीटी में अपनी मौजूदगी के दौरान प्रतिभागियों के बारे में बहुत कुछ कहा, जैसे कि उनके परफॉर्मेंस पर रौशनी डालने से लेकर कौन सा कनेक्शन आखिर तक रहेगा, इत्यादि। लेकिन उन्होंने सबसे ज्यासदा जिस बात पर जोर दिया, वह था हाउसमेट्स का फैशनसेंस। यह सभी जानते हैं नेहा भसीन अपने आउटफिट्स से ओवर द टॉप रहना पसंद करती हैं और उन्हें अभिव्यक्ति के रूप में ड्रेंसिंग करना बहुत अच्छाप लगता है। खैर, राखी सावंत घर में नेहा भसीन की अपीयरेंस से खुश नहीं हैं। राखी ने कहा, नेहा भसीन को अपने फैशन गेम को बढ़ाने की जरूरत है। इसके आगे उन्होंंने कहा, शमिता शेट्टी का फैशन गेम बिल्कुल प्वाइंट पर है। लगता है कि नेहा को वाकई में कुछ करने की जरूरत है, क्योंकि राखी को अच्छेश से पता है कि बिग बॉस में गेम कैसे खेला जाता है, क्यों सही कहा ना? प्रतिभागियों को लेकर राखी की अपनी राय है, काश कोई ऐसा रास्ताग होता, जिससे इन हाउसमेट्स को बताया जा सके कि एन्टोरटेनमेंट दिवा उनके बारे में क्याा कह रही हैं।
Page 1 of 6 pages, Display 1-10 of 55 Next › Last »