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00 स्वस्थ मन से ही स्वस्थ शरीर और सुखी परिवार - रिचा
रायपुर। अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस के उपलक्ष्य में प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के महिला प्रभाग द्वारा विधानसभा मार्ग स्थित शान्ति सरोवर रिट्रीट सेन्टर में मातृ दिवस का आयोजन किया गया। विषय था- स्वस्थ एवं सुखी परिवार में माताओं की भूमिका। समारोह में बोलते हुए ब्रह्माकुमारीज की क्षेत्रीय निदेशिका ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी ने कहा कि परिवार में घर परिवार को व्यवस्थित रखने और सभी सदस्यों की सुख सुविधाओं का ख्याल रखने में माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके साथ ही धन का सही ढंग से इस्तेमाल करना उसी पर निर्भर करता है। लेकिन परिवार में माताओं को वह सम्मान नहीं मिल पाता है जिसकी वह हकदार होती है। लोग समझते हैं कि महिलाएं कुछ नहीं करती हैं जबकि पति और बच्चों का व्यवहार उसके साथ कैसा भी हों वह सबका बराबर ध्यान रखती है। बदले में वह किसी से कुछ नहीं मांगती है। माताओं का बहुत बड़ा त्याग यह है कि वह अपना सारा जीवन पति, बच्चों और घर परिवार की चारदिवारी में कैद होकर व्यतीत कर देती है। वह बच्चों को सुसंस्कारित कर लायक बनाती है।
दिशा स्कूल की प्राचार्य श्रीमती रिचा साव ने कहा कि परिवार में सबकी देखभाल माताएं करती हैं। मेरी नजर में माताएं माना ही देखभाल करने वाली। कोई भी व्यक्ति जो कि देखभाल कर रहा है वह माँ की भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ मन के लिए भौतिक शिक्षा के साथ ही अध्यात्मिक शिक्षा भी जरूरी है। स्वस्थ मन से ही स्वस्थ शरीर और सुखी परिवार का निर्माण हो सकता है। राज्य में मशरूम लेडी के रूप में पहिचानी जाने वाली श्रीमती नम्रता यदु ने संघर्ष को जीवन का हिस्सा बतलाते हुए कहा कि कदम-कदम पर कठिनाईयाँ आती हैं लेकिन हमें उसे जीवन का हिस्सा समझकर आगे बढऩा चाहिए। हमें कठिनाईयों से डरना नहीं चाहिए। जो भी समय ईश्वर ने हमें दिया है उसका लाभ उठाना चाहिए। ब्रह्माकुमारी संस्थान में जो अध्यात्म के द्वारा आत्मा और परमात्मा की शिक्षा दी जाती है वह हमें जीवन को अच्छी तरह जीने के लिए प्रेरित करती है।
रायपुर संचालिका ब्रह्माकुमारी सविता दीदी ने विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि माँ शब्द सबसे अधिक प्यारा होता है। वह जगत जननी है। दया, करूणा, प्रेम और सहिष्णुता आदि सारे गुण उसमें समाहित होते हैं। कहते भी हैं कि ईश्वर ने माँ को अपने ही स्वरूप में गढ़ा है। इसलिए महिलाओं को पुरूषों की तरह दिखने या कपड़े पहनने की जरूरत नहीं है। वह सौम्यता, दिव्यता और कोमलता की प्रतीक है तो सशक्त और शक्तिशाली भी होती है।
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