CNIN News Network

यहां के हम है राजकुमार

08 Oct 2022   404 Views

यहां के हम है  राजकुमार

Share this post with:

* संजय दुबे *
हिंदी फिल्मों में दर्शक केवल देखने नहीं सुनने भी जाता है - इस बात को ध्यान में रखकर पटकथा में संवाद की अहम भूमिका होती है। कहानी के पात्रों को भूमिका देने के साथ साथ उनके संवाद लिखने का काम अलग होता है। नायकों को ध्यान में रख कर ही संवाद लिखे जाते है, पर जब फिल्मों में राजकुमार रहते थे तो उनके लिए संवाद भी दमदार लिखने का दबाव पटकथा लेखकों को रहा करता था। यहां तक कि फिल्म में राजकुमार का नाम और पद का भी विशेष ख्याल रखना पड़ता था। तिरंगा फिल्म में वे सेना के अधिकारी बने थे पहले नाम पढ़ ले - सूर्यदेव सिंह, पद ब्रिगेडियर- थल सेना के मेजर जनरल से नीचे का पद जिसके मातहत 3000-5000 सैनिक ब्रिग्रेड में रहते है।"सूर्या" फिल्म में नाम- राजपाल चौहान, पद- कलेक्टर। बुलन्दी नाम प्रो सतीश कुमार( तब प्रो सतीश धवन, अंतरिक्ष विज्ञान के प्रमुख थे)। इन चंद उदाहरणों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राजकुमार की हैसियत फिल्म इंडस्ट्री में क्या थी।
दरअसल वे फिल्मों में आने से पहले कुलभूषण पंडित थे, पुलिस विभाग में इंसपेक्टर थे।जाहिर है रुतबा व्यक्तित्व में समा चुका था । इस रुतबे को उन्होंने अपनी निजी जिंदगी सहित फिल्मों में भी जिया। 1952 से लेकर 1995 तक वे फिल्मों में काम करते रहे। पुलिस विभाग की नौकरी छोड़कर 1952 में रंगीली फिल्म से शुरुआत किये लेकिन पहचान मिली मदर इंडिया फ़िल्म में।" बिरजू, बीड़ी पिला दे" ये पहला डायलॉग था राजकुमार का , जो आजतक जेहन में है। 1993 में राजकुमार "तिरंगा" फिल्म में नज़र आये जो उनकी बड़ी सफल फिल्मों में थी। नाना पाटेकर जिन्हें दमदार संवाद अदायगी के लिए पहचान मिली हुई थी वे भी इस फिल्म में सहायक ही बन पाए। अमरीश पुरी "सूर्या" फिल्म में ज़मीदार होने के बावजूद कलेक्टर राजकुमार के सामने अपना दम नही दिखा पाए।" हम दो चीज़े अपने साथ रखते है एक सिगार और दूसरा इस्तीफा" और "तुम्हारे जैसे जमींदार हमारे घर के चौखट के सामने खड़े रहते है" जैसे संवाद को बोलने का सामर्थ्य केवल राजकुमार के लिए ही सम्भव था। सौदागर में दिलीप कुमार को भी सुभाष घई ने समझाया था कि राजकुमार के गरूर को झेलना पड़ेगा तभी फिल्म बन पाएगी।
ऐसे राजकुमार का जन्म आज के ही दिन 96 साल पहले हुआ था। 54 फिल्मों के सफर में मदर इंडिया, दिल एक मंदिर, दिल अपना और प्रीत पराई, वक़्त, नीलकमल, मर्यादा, हीर रांझा, पाकीज़ा,हमराज, हिंदुस्तान की कसम, लाल पत्थर जैसी फिल्मों के बाद दूसरी पारी में वे नायिका के बगैर नायक बने। कर्तव्य, सूर्या, सौदागर, बुलंदी,पुलिस मुजरिम, पुलिस पब्लिक,कुदरत, तिरंगा, में अपने रौब दौब के कारण चर्चित रहे। सही मायने में देखा जाए तो 1932 से लेकर 2022 तक के काल मे पटकथा लेखकों ने सबसे ज्यादा दमदार डायलॉग केवल राजकुमार के लिए ही लिख सके। भरोसा न हो तो यू ट्यूब में जाकर देख ले अमिताभ बच्चन के उतने डायलॉग नही मिलेंगे।" हम , हम है, तुम , तुम हो" और "सुनो नेता, हम जब जी चाहे तब नेता बन सकते है पर तुम याद रखो तुम कभी कलेक्टर नही बन सकते" ये डायलॉग ही बताता है कि राजकुमार आखिर राजकुमार क्यो थे।

Share this post with:

POPULAR NEWS

© 2022 CNIN News Network. All rights reserved. Developed By Inclusion Web